पिछले छठ पूजा में दोस्तों के साथ |
फलना दा आजकल खेत से जब भी सब्जी लाने जाते हैं न तब ट्रैन को गुजरते ही वो ध्यान लगाकर ट्रेन को देखने लगते हैं। पहले वो ऐसा नही करते थे। खेतों के काम में मसगुल रहते थे। लेकिन जब से उन्होंने सुना है कि दिल्ली से बिहार के लिए दीवाली और छठ पूजा के लिए स्पेशल ट्रेन चलाई गई है तभी से वो पटना से आने वाली ट्रेनों को ध्यान से देखने लगते है। और इस बार तो मंटुआ भी फोन करके बोल दिया है कि वह दिवाली में गाँव आ रहा है। शायद इसलिए बाबूजी अभिये से मंटुआ के आने का राह जोख रहे है। कार्तिक का महीना चल रहा है इसलिए अम्मा ने छुतहर सब्जी लाने से मना कर दिया है। लहसुन प्याज तो दूर कार्तिक मास में छुतहर सब्जी जैसे बैगन, परोर भी घर में नही बनता है। हालांकि मुझे जब भी बाजार जाने का मौका मिलता है मैं चाट समौसे खा ही लेता हूँ। बाजार में कई चाट समौसे बाले ऐसे भी हैं जो कार्तिक मास में चाट समौसे में प्याज नही डालते हैं। वैसे भी प्याज का दाम अभी आसमान छू रहा है तो इसी बहाने उन्हें कुछ राहत भी मिल रहा है।
कार्तिक का महीना घुसते ही गाँव मे छठ पूजा का असर दिखने लगता है। दीवाली के लिए घरों की सफाई रंगाई पुताई के बाद गली और सड़कों की सफाई में लोग जुट जाते हैं। बिजली के खंभों पर सरकार के तरफ से तो बल्ब लगाया नही जाता है इसलिए मुहल्ले में चंदा करके लोग बल्ब लगाते हैं। इसके लिए paytm जैसे ई वॉलेट का भी सहारा लिया जाता है। गाँव से बाहर काम कर रहे लोग paytm के द्वारा चंदा का भुगतान बड़े आसानी से कर रहे है। घर की बुजुर्ग महिलाये सुबह जल्दी उठकर गंगा स्नान करने चली जाती है। ऐसा वो पूरे कार्तिक महीना तक करती हैं। गंगा नदी से स्नान करके लौटते समय रास्ते मे उन लड़कों को भटकार लगाती हैं जो ब्रश या दातुन कर रहे लड़के रास्ते में जहाँ तहाँ थूक फेंकते नजर आते हैं। शहरों में ये सब चीजें आपको देखने को नही मिलेगा। गंगा स्नान करने के बाद गाय के गोबर का गोइठा बनाने में लग जाती हैं। गोबर से बनाये गए लोइया को जमीन पर एक दो बार थपथपाने के बाद ऊपर दीवाल पर ऐसे फेंकती है कि एकदम सही जगह पर जाकर लोइया चिपक जाता है। कई बार तो लोइया जमीन से 10 फिट की दूरी तक जाकर चिपक जाता हैं। जिसे सूखने के बाद उखाड़ने के लिए बच्चों को कंधे पर चढ़ना पड़ता है। या फिर पड़ोस से बाँस का सीढ़ी माँगकर लाना पड़ता है।
कार्तिक का महीना घुसते ही गुटखा खाने बालों को सबसे ज्यादा तकलीफ़ होता है। क्योंकि उनकी आदत गुटखा खाकर जहाँ तहाँ थूकने की होती है। ऐसे में उन्हें थूकने के लिए बार बार उठकर थोड़ी दूर जाना पड़ता है। वहीं खैनी बाले इस मामले में कुछ हद तक सही पाये गए हैं। खैनी खाने के बाद आजकल वो एक ही बार फेंकने के लिए ही उठते हैं। बिहार में सरकार ने हाल ही में गुटखा पर बैन लगा दिया है। लेकिन उसके बाबजूद भी बड़े आसानी से गुटखा मिल रहा है। और इसके आदि लोग मजे लेकर खा रहे हैं।
छठ पूजा का माहौल बाजारों में भी अभी से दिखने लगा है। टीबी, मोबाइल या डेकोरेशन की दुकानों पर छठ पूजा के गीत बजाये जा रहे हैं। जिसे सुनते ही मन में आस्था का दीपक प्रज्वलित हो जाता है। कुछ साल पहले मोबाइल दुकानों पर 10, 20 रुपये में छठ पूजा के ढेरों गीत आसानी से भरवा लिए जाते थे। लेकिन जब से टी सीरीज बालों ने गाना भरने बालों को कॉपी राइट के नाम पर लाइसेंस लेने की बात कही है और कई दुकानदारों को कानूनी रूप से सजा दिलवाया है तब से गाना भरने वाले दुकानदारों ने गाना भरना ही बंद कर दिया है। वैसे भी जिओ के आने के बाद सब लोग डायरेक्टर यूट्यूब से ही गाने सुन लेते हैं। छठ पूजा के पुराने गीतों को सुनने में जो आनंद मिलता है। वो मधुरता नए गाने और गीतों में नही है। छठ पूजा को लेकर हर साल सैकड़ों नये गाने रिकॉर्ड किये जाते हैं। वो गाने अगले साल कहीं न कहीं खो जाते हैं। लेकिन अनुराधा पोडवाल और सारदा सिन्हा के गानों में जो म्यूजिक है उसे सुनते ही छठ पूजा की याद आने लगता है।
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